सावधानी हटी नहीं कि बच्चा पड़ जाता है। बीमीर। ऐसे में आप अपना भरपूर समय उसे देने का प्रयास करते हैं। तो क्या बढ़िया हो, यदि आप बच्चे के स्वास्थ्य के प्रति हमेशा ही चौकन्ने रहें।
पेट संबंधी समस्याएं
पेट संबंधी समस्याएं आम हैं जो लगभग 10 फीसदी बच्चों को होती हैं। यह अमूमन शिशु के दो-तीन सप्ताह के होने पर आरंभ हो जाती हैं। यहां तक कि लगातार दो घंटे तक भी रह सकता है। पेट की समस्याएं आमतौर पर अधिकतर ढलती दोपहर और आंरम्भ होती शाम को होती हैं।
बच्चा जैसे-जैसे छटे सप्ताह तक पहुंचता है, पेट की कई समस्याएं स्वयं ही हल होने लगती है। लेकिन तीन-चार माह का होने पर काफी हद तक वे समस्याओं से मुक्ति पा लेते हैं। बहरहाल आप बच्चे की कई तरीके से मदद कर सकते हैं, जैसे उसे घुमाने ले जाना, गुनगुने पानी से नहलाना, मीठा संगीत सुनाना, और प्रेम से थपकी देकर सुलाना इत्यादि।
दांत निकलने पर
बच्चे के प्रथम दांत तीन से 16 माह में आ जाते है। सबसे पहले सामने नीचे के दो दांत आते हैं। और फिर चार से आठ सप्ताह में चार ऊपर के दांत आते हैं। तीन वर्ष का होने पर उसके सभी प्राइमरी दांत आ जाते हैं। और हर चार माह में उसके चार नएं दांत आते है।
दांत आने पर हल्का दर्द होता है और मसूड़े फूल जाते हैं। इससे निचात दिलाने के लिए उसके मसूड़ों की साफ और हल्के हाथों से मालिश करनी चाहिए। शिशु के दांतों को मलमल के नरम कपड़े से साफ करें और थोड़ा बड़ा होने पर मुलायम बेबी ब्रश से दांत साफ कर सकतें हैं। बच्चे के ब्रश पर मटर के दाने के बराबर फ्लोराइड रहित पेस्ट लगाएं। लगातार दांतों के आसपास पहुंचने वाली चीनी उसके दांतों और मसूड़ों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।
एनीमिक तो नहीं
एनीमिक यानी खून की कमी भी बच्चों में आम देखी जा सकी हैं। यह स्थिति तब आती है जब शरीर में लाल रक्त कोशिकाएं बहुत कम हो जाएं। चूंकि लाल रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन होता है, जो शरीर के उत्तकों के ऑक्सीजन देता है। शरीर में लौह तत्व की कमी से जूझने के लिए प्राकृतिक रूप से बचाव के रास्ते उपलब्ध रहते हैं। जन्म के बाद शिशु में हीमोग्लोबिन का स्तर करीब दो माह तक काफी कम रहता है। लेकिन इसके इलाज की जरूरत नहीं होती। बच्चे के शरीर में खुद ब खुद रक्त कोशिकाएं बनने लगती है। यदि बच्चे के खानपान का ध्यान ना रखा जाए तो वह रक्त की कमी का शिकार हो सकता है।
होठों में गुलाबीपन ना रहना, त्वचा में पीलापन दिखना, चिडचिड़ापन बढ़ना, थकावट रहनी, सिर में दर्द रहना, सुस्त रहना, इत्यादि। कई बार यह स्थिति बहुत गंभीर हो जाती है, इस स्थिति में लाल रक्त कोशिकाएं डॉक्टरी इलाज द्वारा ली जाती है। दवाइयों द्वारा भी इलाज किया जाता है। ये दवाएं रक्त कोशिकाओं को नियंत्रण में लाती हैं और उन्हें जल्दी- जल्दी नष्ट नहीं होने देतीं। कुछ मामलों पर बोन मैरो ट्रांस्प्लांट किया जाता है।
रहें सावधान तो ना हो बच्चे बीमार
Reviewed by YoGi
on
2:14 PM
Rating:
No comments: