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नीतिगत चुनौतियाँ

नीतिगत चुनौतियाँ


नीतिगत चुनौतियाँ

भारत ‘ऑन-डिमांड’ अर्थव्यवस्था के साथ लचीली नौकरियों, क्षणिक मज़दूरी और वितरित जोखिमों को कैसे नियंत्रित करेगा, यह एक प्रमुख चुनौती है।

इसके लिये आने वाले वर्षों में श्रम नीति में तीन प्रमुख क्षेत्रों में ध्यान देने की आवश्यकता है, जिसमें श्रमिकों को पुनः कौशल प्रदान करना और अल्पावधि में सामाजिक नीति पर पुनर्विचार करना, साथ ही लंबे समय तक अर्थव्यवस्था के नए क्षेत्रों की रोज़गार क्षमता की पुन: जाँच करना शामिल है।

सबसे पहले, स्वचालन के आधार पर कार्य कर रहे मौजूदा श्रमिकों को फिर से तैयार करना, दूससे श्रमिकों को नए कार्यों में पुन: नियोजित करना और विश्वविद्यालय में छात्रों के संभावित श्रम को फिर से स्थापित करना शामिल है।

इसके अलावा, ‘स्मार्ट’ काम और विशिष्ट कौशल की मांग की अवधारणा,  विश्वविद्यालयों को उच्च शिक्षा और प्रशिक्षण तथा राज्य को नौकरी के बाज़ार में संक्रमण की सुविधा के लिये फिर से डिज़ाइन हेतु प्रोत्साहित करेगी।

दूसरा, कार्यशील आबादी, सेवानिवृत्ति और व्यक्तिगत जीवन हेतु योजनाओं पर पुनर्विचार करने की तत्काल आवश्यकता है।

उल्लेखनीय है कि सामाजिक नीति में आजीविका बीमा और सार्वभौमिक मूल आय जैसे भविष्य में उत्पन्न होने वाली अतिरिक्त आय कर और उसे वितरित करने की क्षमता का अनुमान राज्य लगाते हैं।

ILO की विश्व सामाजिक संरक्षण रिपोर्ट 2017-19 से पता चलता है कि भारत में कम-से-कम एक सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम द्वारा कवर श्रमिकों का हिस्सा चीन में 63 प्रतिशत के मुकाबले केवल 19 प्रतिशत है।

इसके अलावा, ILO द्वारा निर्धारित ‘काम पर अधिकार’ और ‘सभ्य कार्य’ सहित श्रम के अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों को संशोधित और नई अर्थव्यवस्था में विस्तारित किया जाना चाहिये जहाँ श्रमिक ‘ह्यूमन क्लाउड प्लेटफॉर्म’ के माध्यम से कार्य करते हैं।

 गौरतलब है कि एक सभ्य कार्य को स्वतंत्रता की शर्तों (मौजूदा सुरक्षित अधिकार), इक्विटी (पर्याप्त पारिश्रमिक) और गरिमा (सामाजिक नीति कवरेज) के तहत उत्पादक कार्य के रूप में परिभाषित किया जाता है।

तीसरा, विनिर्माण और उद्योगों के बाहर उन नए क्षेत्रों को तलाशने की तत्काल आवश्यकता है, जिनके पास स्वचालन के आधार पर वर्तमान युग में भुगतान कार्य उत्पन्न करने की क्षमता है।

ध्यातव्य है कि वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने वर्ष 2018 में नई राष्ट्रीय औद्योगिक नीति को प्रस्तुत करते हुए इसकी ओर इशारा भी किया था।

इसके अतिरिक्त वर्ष 2018 की ILO की रिपोर्ट 'केयर वर्क एंड केयर जॉब्स फॉर द फ्यूचर ऑफ डेस वर्क' के मुताबिक देखभाल कार्य को  अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र माना गया है जिसमें भारी रोज़गार सृजन की क्षमता है।

प्रत्येक दिन, अवैतनिक देखभाल कार्य दो घंटे का काम करने वाले दो अरब लोगों के बराबर श्रमिकों को नियोजित करता है और ILO की रिपोर्ट में यह तर्क दिया गया है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक उद्यमों में बढ़े निवेश के साथ वर्ष  2030 तक इससे 269 मिलियन नौकरियाँ  सृजित होंगी।

यह विशेष रूप से महिलाओं को लाभान्वित करेगा, जो वैश्विक स्तर पर वर्तमान में अवैतनिक देखभाल के दो-तिहाई से अधिक कार्य में योगदान देती हैं।


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