न्यूट्रॉन की खोज के कारण ही परमाणु बम जैसे विनाशकारी शस्त्र का अविष्कार संभव हुआ।
जेम्स चैडविक को दुनिया एक ऐसे शख्स के तौर पर जानती है, जिन्होंने न्यूट्रॉन की खोज की थी। इस दिग्गज अंग्रेज भौतिकशास्त्री का जन्म मैनचेस्टर, इंग्लैड में हुआ था। उनकी शिक्षा मुख्यत: मैनचेस्टर में हुई थी। वहां वह कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र थे। सन 1923 के बाद चैडविक ने रदरफोर्ड प्रयोगशाला में तत्वों के रूपांतरण पर कार्य किया । इसमें तत्वों के नाभिकों पर अल्फा कणों की बौछार की जाती थी, जिससे एक तत्व दूसरे तत्व में बदल जाता था। उन्हीं अध्ययनों में चैडविक को परमाणु के नाभिकों का गहराई से अध्ययन करने का अवस मिला।
चैडविक को सन 1927 में रॉयल सोसाइटी का फैलो नियुक्त किया गया। सन 1932 में उन्होंने यह प्रदर्शित कर दिखाया कि बेरिलियम नामक तत्व पर अल्फा कणों की बौछार करने से जो कण निकलते हैं, उनका द्रव्यमान लगभग प्रोट्रॉनों के बराबर होता है, लेकिन उन पर कोई आवेश नहीं होता है। चैडविक ने इन कणों का नाम न्यूट्रॉन रखा।
उन्होंने इन कणों के दूसरे गुणों का भी अध्ययन किया। इस अाविष्कार के लिए उन्हें सन 1935 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। न्यूट्रॉन के खोज के कारण ही परमाणु बम जैसे विनाशकारी शस्त्र का आविष्कार भी संभव हुआ, क्योकि न्यूट्रॉन कणों में परमाणु के अंदर प्रवेश करने की क्षमता होती है। इन्हीं कणों के खोज के आधार पर न्यूट्रॉन बम का आविष्कार हुआ। इन्हीं कणों की खोज के लिए चैडविक को सन 1932 में ह्यूज मेडल भी प्रदान किया गया था।
सर जेम्स चैडविक ने जर्मनी के प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री हैंस गीगर के साथ भी कार्य किया था। गीगर ने रेडियोधर्मी क्रियाओं को समझने के लिए गीगर काउंटर का आविष्कार किया। श्रृंखला प्रक्रियाओं पर भी चैडविक ने काफी काम किया था। इन्हीं प्रक्रियाओं के फलस्वरूप परमाणु विखंडन संभव हो सका। चैडविक ने सर्वप्रथम समस्थानिकों के अस्तित्व की विवेचना की थी, जिसमें उन्होने यह बताया था कि जब किसी समान प्रोट्रॉनों की संख्या वाले नाभिकों के न्यूट्रॉनों की संख्या असमान होती है, तो ऐसे नाभिकों को उस तत्व का समस्थानिक कहा जाता है।
जेम्स चैडविक को दुनिया एक ऐसे शख्स के तौर पर जानती है, जिन्होंने न्यूट्रॉन की खोज की थी। इस दिग्गज अंग्रेज भौतिकशास्त्री का जन्म मैनचेस्टर, इंग्लैड में हुआ था। उनकी शिक्षा मुख्यत: मैनचेस्टर में हुई थी। वहां वह कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र थे। सन 1923 के बाद चैडविक ने रदरफोर्ड प्रयोगशाला में तत्वों के रूपांतरण पर कार्य किया । इसमें तत्वों के नाभिकों पर अल्फा कणों की बौछार की जाती थी, जिससे एक तत्व दूसरे तत्व में बदल जाता था। उन्हीं अध्ययनों में चैडविक को परमाणु के नाभिकों का गहराई से अध्ययन करने का अवस मिला।
चैडविक को सन 1927 में रॉयल सोसाइटी का फैलो नियुक्त किया गया। सन 1932 में उन्होंने यह प्रदर्शित कर दिखाया कि बेरिलियम नामक तत्व पर अल्फा कणों की बौछार करने से जो कण निकलते हैं, उनका द्रव्यमान लगभग प्रोट्रॉनों के बराबर होता है, लेकिन उन पर कोई आवेश नहीं होता है। चैडविक ने इन कणों का नाम न्यूट्रॉन रखा।
उन्होंने इन कणों के दूसरे गुणों का भी अध्ययन किया। इस अाविष्कार के लिए उन्हें सन 1935 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। न्यूट्रॉन के खोज के कारण ही परमाणु बम जैसे विनाशकारी शस्त्र का आविष्कार भी संभव हुआ, क्योकि न्यूट्रॉन कणों में परमाणु के अंदर प्रवेश करने की क्षमता होती है। इन्हीं कणों के खोज के आधार पर न्यूट्रॉन बम का आविष्कार हुआ। इन्हीं कणों की खोज के लिए चैडविक को सन 1932 में ह्यूज मेडल भी प्रदान किया गया था।
सर जेम्स चैडविक ने जर्मनी के प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री हैंस गीगर के साथ भी कार्य किया था। गीगर ने रेडियोधर्मी क्रियाओं को समझने के लिए गीगर काउंटर का आविष्कार किया। श्रृंखला प्रक्रियाओं पर भी चैडविक ने काफी काम किया था। इन्हीं प्रक्रियाओं के फलस्वरूप परमाणु विखंडन संभव हो सका। चैडविक ने सर्वप्रथम समस्थानिकों के अस्तित्व की विवेचना की थी, जिसमें उन्होने यह बताया था कि जब किसी समान प्रोट्रॉनों की संख्या वाले नाभिकों के न्यूट्रॉनों की संख्या असमान होती है, तो ऐसे नाभिकों को उस तत्व का समस्थानिक कहा जाता है।
न्यूट्रॉन के खोजकर्ता चैडविक
Reviewed by YoGi
on
1:24 PM
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