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मां दुर्गा विसर्जन के समय प्रार्थना

नवरात्र के नौ दिन हम पूरी निष्ठा और श्रद्धा से देवी मां की पूजा-अर्चना करते हैं तथा नवरात्र के बाद भावभीनी विदाई के साथ उनकी प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है। 


मां दुर्गा विसर्जन के समय प्रार्थना

नौ दिन तक हम देवी की पूरी निष्ठा और हर्षोल्लास से पूजा करते हैं तथा नवरात्र के बाद भावभीनी विदाई के साथ उनका विसर्जन कर दिया जाता हैं। विसर्जन का संस्कृत में अर्थ है-- विदा करना या पानी मे विलीन कर देना।
विसर्जन के पीछे अनेक कारण हैं। पौराणिक तथ्य़ों के अनुसार, मां नौ दिन अपने मायके में रहने आती है। नवें दिन इन्हें मायके से ससुराल विदा कर दिया जाता हैं। अन्य मान्यतानुसार, महाशक्ति (महादेवी) योग निद्रा की यह मूर्तियां भगवान विष्णु (जल तत्व ) से अलग होकर नहीं रह सकती, अत: इन्हे जल में विसर्जित करना भक्तों का परम कर्तव्य माना जाता है। तीसरी मान्यतानुसार, माँ दुर्गा का महिषासुर के साथ नौ दिन तक युद्ध चला था, अंत में वह महिषासुर का वधकर महिषासुरमर्दिनी कहलाई। तभी से हर्षोंल्लास के साथ नवदुर्गा का पूजन किया जाता है। चूंकि इन दिनों पूजा के नियम और विधान बड़े कड़े होते हैं और पूरे साल उनका पालन नहीं किया जा सकते हैं, अत: नवरात्र के बाद मूर्ति/ज्वारे विसर्जन की प्रथा है। अष्टमी/नवमी के दिन कन्या पूजन के बाद हाथ में चावल के दाने और फूल लेकर संकल्प लें तथा  मां को प्रणाम करते हुए कहें। कि मां आप हमारे यहां पधारी, आपका बड़ा अनुग्रह है। हमारे ऊपर अपनी कृपा बनाए रखना तथा अगले वर्ष पुन: आना। इसके पश्चात घट पर स्थापित नारियल को प्रसाद स्वरूप सभी को बांट देना चाहिए। घट का जल सारे घर में छिड़क देना चाहिए। सुपारी को भी प्रसाद के रूप में वितरित कर दें। घट पर रखे सिक्के को तिजोरी या गुल्लक में रख ले, इससे सारे वर्ष लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। चौकी या सिंहासन के वापस  मंदिर में रख दें। मां को अर्पित साड़ी प्रसाद स्वरूप ग्रहण कर लें तथा जेवर को संभाल कर रख दें। गणेश प्रतिमा को पुन: मंदिर में स्थापित कर दें। चढ़ावे की मिठाई को प्रसाद के रूप में बांट दें। पूजा स्थल पर बिखरे चावल अथवा भोग को पक्षियों को डाल दें।


मां दुर्गा विसर्जन के समय प्रार्थना


मां दुर्गा की प्रतिमा तस्वीर, जौ तथा पूजा सामग्री को जल में प्रवाहित कर दें। पश्चिम बंगाल में पष्ठी से लेकर दशमी तक पूजा की जाती है। प्रतिमा को षष्ठी को स्थापित किया जाता है, इस समय उनका चेहरा ढका रहता है। बोधन के बाद षष्ठी को शाम को चेहरा खोला जाता है। दुर्गा पूजा के पश्चात दशमी को मां को विदाई दी जाती है। हमारे यहां जिस प्रकार लड़की की शादी के समय रात को विदाई नहींं करते अगले दिन कन्या को सिंदूर या सुहाग चढ़ाया जाता है, उसी प्रकार मां अष्टभुजा को भी दशमी को सिंदूर चढ़ाया जाता है। इसे सिंदूर खेला  कहा जाता है। सभी मां को सिंदूर लगाने के बाद एक-दूसरे को सिंदूर लगाते है। कई लोग मां के पैर से सिंदूर लेकर पोटली में भी रख लेते है। मां दुर्गा के पैरों से सिक्का स्पर्श कर भी अपने पास रख लेते हैं।

मां दुर्गा के विसर्जन के समय हर बंगाली हर बंगाली पूजा खत्म होने के बाद दोबारा आने की प्रार्थना करते हैं। घट से लौटकर लोग फिर से पंडाल में मिलते हैं। शांति जल मिलता है। शाम को सभी छोटे बड़ों के पैर छूते हैं, प्रणाम करते हैं तथा बच्चों को आशीर्वाद और पैसे मिलते हैं।

विसर्जन के बाद सभी मां के पुन: आगमन की प्रार्थना करते हैं। किसान अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करते हैं। सुहागिनें सदा सुहागन रहने की प्रार्थना करती हैं। भक्त परिवार-कुटुम्ब की खुशहाली की प्रार्थना करते हैं, ज्यादातर व्यक्ति अपने व्यक्तिगत सुखों की कामना करते हैं। जिन कन्याओं को हम देवी की तरह पूजते हैं, उनकी सुरक्षा की प्रार्थना या कामना करनी चाहिए। लोक कल्याण, समाज और देश कल्याण की प्रार्थना करनी चाहिए। देवी से रूप और यश की कामना के साथ सद्बुद्धि की कामना भी करें।



मां दुर्गा विसर्जन के समय प्रार्थना मां दुर्गा विसर्जन के समय प्रार्थना Reviewed by YoGi on 8:09 PM Rating: 5

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