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नवरात्र में मां गंगा का पूजन

नवरात्र में मां गंगा का पूजन


कलिकाल में गो, सूर्य चंद्रमा, गीता, गंगा ये प्र्त्यक्ष देवी-दैवता है। इसमें भी माता गंगा सर्वोपरि है। बिना गंगाजल के तो किसी अनुष्ठान की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। माता गंगा पहाड़ में बाल्यावस्था में रहती हैं तथा सर्वप्रथम मैदान में (हरिद्वार में) आते ही युवती बन जाती है। तथा काशी पहुंचते-पहुंचते प्रौढ़ावस्था का रुप ले लेती है। तथा बंगाल में वृद्धावस्था को प्राप्त करके सागर में मिल जाती हैं। हरिद्वार में आते ही युवती बनी गंगा लोगों की हर प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाली हो जाती हैं। यहां का ज्ञान पूरे कलियुग में मोक्षदायी होती है। काशी का ज्ञान विश्व प्रसिद्ध है। यहा गंगा का स्वरूप दिव्य हो जाता है। कनखल-हरिद्वार में गंगा एक शक्ति त्रिभुज का निर्माण करती है,

पृथ्वी पर शक्तिपीठ मायादेवी का स्थान है, गंगा के दोनों ओर शिवालिक पर्वत है। नीलपर्वत पर माता चंड़ी का स्थान है तथा दूसरी तरफ माता मनसा का स्थान है। यदि इन दोनों मंदिरों को मिलाते हुए एक रेखा खींचे तथा एक रेखा गंगा किनारे मायादेवी के मंदिर तक खींचे , तो यह एक शक्ति का त्रिकोण बनता है, जोकि समस्त शक्ति पीठों का आधार है, यहीं से शक्ति का संचार होता है।

नवरात्र में नवदुर्गा की पूजा की जाती है, जिनमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंद माता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है, इसमें गंगाजल का विशेष योगदान रहता है।

नवरात्र के प्रथम दिन गंगा पूर्व में, दूसरे दिन उत्तर पूर्व में, तृतीय दिन उत्तर दिशा, चतुर्थ दिन उत्तर पश्चिम, पंचम दिन पश्चिम दिशा में, छठे दिन दक्षिण-पश्चिमी कोण में, सप्तम दिन दक्षिण दिशा में, अष्टम दिन दक्षिण-पूर्व में तथा नवम दिन आकाश गंगा में रहती हैं।


नवरात्र में मां गंगा का पूजन
मां गंगा

नवरात्रों की पूजा में गंगा स्नान के बाद नवग्रहों, षोडशमात्रिकाओं के साथ गंगा पूजन भी अनिवार्य है तथा नवरात्र के अलग-अलग दिन भी गंगा में उसी दिशा की ओर मुख करके स्नान किया जाता है, जिस ओर गंगा का निवास होता है। प्रत्येक ग्रह भी नवदुर्गा से जुड़ा है। सूर्य का संबध शैलपुत्री से, चन्द्रमा का सबंध ब्रह्मचारिणी से, मंगल का संबंध चन्द्रघंटा से, बुध का संबंध कूष्मांडा से, गुरु का संबंध स्कंदमाता से, शुक्र का संबंध कात्यायनी से, शनि का संबंध कालरात्रि से, राहू का संबंध महागौरी से तथा केतु का संबंध सिद्धिदात्री से ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है। इनका भी स्थान ठीक उसी प्रकार से उसी दिशा में कहा जाता है, जहां जिस दिन गंगा जिस दिशा में रहती है।

गंगा की मिट्टी का विधान बहुत ही स्पष्ट है। कहा  गया हा कि दुर्गा की मूर्ति अष्टभुजा या चतुर्भुजा जो भी बनाई जाती है, उसे गंगा की मिट्टी में मिलाकर ही बनाया जाता है। जब गंगा की मिट्टी से मूर्ति बनाई जाती है, तो उसमें जो रंग भरा जाता है, उसमें रोशनाई भी गंगाजल में मिलाकर बनाने का विधान है। फिर जब षोडोपचार पूजा किसी भी मूर्ति की होती है, वह चाहे मिट्टी स्वर्ण, पीतल, रजत, किसी भी धातु की हो, उसको स्नात नवरात्र में गंगाजल के द्वारा ही कराया जाता है। जो अमृत कलश रखा जाता है उसमें अष्टधातु पंचपल्लव के साथ गंगाजल ही भरा जाता है। इसके बाद आचमन, स्नान, पवित्री स्नान भी गंगाजल के द्वार ही किया जाता है। नवरात्र में शक्ति पूजन के विधान के साथ नवग्रहों की पूजा भी ग्रह शांति के लिए की जाती है तथा इसी समय में दशमहाविद्याओं की पूजा की जाती है, मत्सय पुराण अध्याय (102) में वर्णन किया है। कि नवरात्रों या किसी भी शक्ति के अनुष्ठान में बिना गंगा स्नान किए शरीर की शुद्धि नहीं होती और फल नहीं मिलता।





गंगा स्नान करते समय हाथ में गंगाजल लेकर संकल्प बोलकर ही गंगा पूजा करनी चाहिए कि हे मां आप विष्णु के चरण से उत्पन्न हुई हो, मेरी रक्षा करो तथा मेरा अनुष्ठान जो नौ दिन का है, उसे पूर्ण करो। अंतरिक्ष व पृथ्वी पर गंगा 35 करोड़ तीर्थों का निर्माण करती है, क्योकि माता गंगा ब्रह्मा के कमंडल से निकलकर, विष्णु के चरणों को धोते हुए, शिव का अभिषेक करते हुए पृथ्वी लोक पर आती है।

अत: तीनों देवों ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा उनकी शक्तियों महासरस्वती, महालक्ष्मी, महाकाली का गुण गंगाजल में विद्यमान है। इन तीनों शक्ति के इस रूप को ही अमृत कहा जाता है। बिना इस अमृत के कोई भी शक्ति पूजा नहीं की जा सकती ।




                                 
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नवरात्र में मां गंगा का पूजन नवरात्र में मां गंगा का पूजन Reviewed by YoGi on 12:49 PM Rating: 5

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