जलवायु वित्त से जुड़े तीन आवश्यक
प्रमुख बिंदुइस परिचर्चा पत्र में जलवायु वित्त से जुड़े तीन आवश्यक तत्त्वों यथा- Scope (दायरा), Scale (मात्रा) और Speed (गति) का विस्तार से विश्लेषण किया गया है।
परिचर्चा पत्र में विकसित देशों द्वारा जलवायु वित्त (Climate Finance) के बारे में दिये गए विभिन्न आँकड़ों पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई है।
इस परिचर्चा पत्र के अनुसार, विभिन्न रिपोर्टों में जलवायु परिवर्तन से जुड़े वित्त की जिन परिभाषाओं का उपयोग किया गया है वे UNFCC (United Nations Framework on Climate Change) के प्रावधानों के अनुरूप नहीं हैं। इस संबंध में जिन पद्धतियों का उपयोग किया गया वे भी संशययुक्त थीं।
इसमें उन आवश्यक तत्त्वों की धीरे-धीरे पहचान करने की कोशिश की गई है जो विकसित देशों से विकासशील देशों की ओर प्रवाहित होने वाले जलवायु वित्त के सुदृढ़ एवं पारदर्शी लेखांकन के लिये आवश्यक हैं।
परिचर्चा पत्र का महत्त्व
जहाँ एक ओर विकासशील देशों की वित्तीय ज़रूरत ट्रिलियन डॉलर में है, वहीं दूसरी ओर, जलवायु वित्त से जुड़ी सहायता के साथ-साथ इसमें वृद्धि के लिये विकसित देशों द्वारा व्यक्त की गई प्रतिबद्धताएँ स्पष्ट रूप से वास्तविकता में तब्दील नहीं होती हैं। जलवायु वित्त के बारे में सटीक जानकारी देने और इस पर करीबी नज़र रखने से संबंधित मामला भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।
क्या कहते हैं आँकड़े?
2016 में विकसित देशों ने 100 अरब अमेरीकी डालर के जलवायु वित्त पर एक रोडमैप प्रकाशित किया था जिसमें दावा किया गया कि 2013-14 में सार्वजनिक जलवायु वित्त का स्तर प्रतिवर्ष 41 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया था। हालाँकि, इन दावों का कई लोगों द्वारा विरोध किया गया था।
2015 में भारत सरकार के एक परिचर्चा पत्र में उल्लेख किया गया कि 2013-14 में वास्तविक जलवायु वित्त के वितरण का स्तर 2.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
2017 के आँकड़े भी इसी तरह की कहानी व्यक्त करते हैं। बहुपक्षीय जलवायु निधि के लिये कुल प्रतिबद्धताओं में से वास्तव में लगभग 12 प्रतिशत को ही वितरित किया गया।
UNFCC की स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में Annex II Parties की ओर से किया जाने वाला कुल जलवायु विशिष्ट वित्तीय प्रवाह 38 बिलियन अमेरिकी डॉलर है जबकि जलवायु वित्त का लक्ष्य 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
जैसा कि निम्नलिखित चार्ट में दर्शाया गया है, इस वित्त का अधिकांश प्रवाह (लगभग 90 प्रतिशत) द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अन्य चैनलों के माध्यम से किया गया है, जबकि इनमें से केवल 10 प्रतिशत का प्रवाह बहुपक्षीय निधि के माध्यम से किया गया था।
निष्कर्ष
इस परिचर्चा पत्र का संदेश स्पष्ट है कि विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को उपलब्ध कराए जाने वाले जलवायु वित्त की सही मात्रा पर अधिक विश्वसनीय, सटीक और सत्यापन योग्य आँकड़ों की आवश्यकता है।
वित्तीय संसाधनों के लेखांकन का मॉडल किसी विशेष देश के विवेकाधिकार पर आधारित नहीं हो सकता है। जलवायु वित्त की पारदर्शी रिपोर्टिंग करने के लिये लेखांकन ढाँचे को ठोस परिभाषाओं के माध्यम से मज़बूत बनाया जाना चाहिये।
जलवायु वित्त संबंधी रिपोर्टिंग में विश्वसनीयता, सटीकता और निष्पक्षता से संबंधित कई मुद्दे हैं जिनका समाधान किया जाना आवश्यक है।
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जलवायु वित्त से जुड़े तीन आवश्यक
Reviewed by YoGi
on
7:24 PM
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