★ कच्चे तेल आयात हेतु नए नियम (India-Iran)
★ चर्चा में क्यों?
★ भारत और ईरान ने कच्चे तेल में अपना व्यापार जारी रखने के लिये नए नियम स्थापित किये हैं, भारत ने विवादित परमाणु कार्यक्रम के कारण फारस खाड़ी के देशों पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका से अस्थायी छूट हासिल की है।
● प्रमुख बिंदु
★ उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने भारत और अन्य देशों से चार नवंबर तक ईरान से तेल आयात में कटौती कर उसे समाप्त करने या प्रतिबंधों का सामना करने के लिये तैयार रहने की बात कही थी।
★ जहाज़ और कार्गो बीमा की कमी सऊदी अरब और इराक के बाद भारत के तीसरे सबसे बड़े आपूर्तिकर्त्ता ईरान से होने वाले आयात को नुकसान पहुँचाएगी।
★ इस बाधा को दूर करने के लिये भारत के नौवहन मंत्रालय ने राज्य द्वारा संचालित तेल रिफाइनरों के माध्यम से द्वारा कच्चे तेल की खरीद के लिये सरकार द्वारा अनिवार्य एक महत्वपूर्ण शिपिंग नियम में संशोधन किया है।
★ इस नियम के अनुसार लंदन स्थित वैश्विक बीमा समूह द्वारा विस्तारित एक बराबर देयता सीमा के साथ देश में क्रूड ऑयल लाने वाले ईरान के टैंकरों को कवर प्रदान करने हेतु मंत्रालय ने दो ईरानी जहाज़ अंडरराइटर्स - किश पी एंड आई क्लब और क्यूआईटीए पी एंड आई क्लब के लिये फरवरी 2020 तक की अनुमति दी है।
★ इस कदम से यह उम्मीद की जा रही है कि प्रतिबंध प्रभावित देश से तेल की आपूर्ति जारी रखने में मदद मिलेगी।
★ इस नियम के मुताबिक भारत कच्चे खरीद के लिये ईरान का रूपए में भुगतान करेगा, जिसका ईरान भारत से माल आयात करने के लिये उपयोग करेगा।
★ उल्लेखनीय है कि IOCL, MRPL, BPCL और HPCL समेत राज्य संचालित तेल रिफाइनरीज़ ने ईरान के साथ सालाना टर्म कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किये थे, इससे पहले अमेरिका ने इसी वर्ष मई 2016 में ईरान के साथ पश्चिमी देशों द्वारा हस्ताक्षरित एक परमाणु समझौते से बाहर निकलने के बाद प्रतिबंधों को दोबारा लागू किया जाने का फैसला किया था। इस फैसले के बाद आधे से अधिक रिफाइनरीज़ ने इन अनुबंधों को छोड़ दिया था।
★ नए प्रतिबंधों के लागू होने के बाद FOB आधार पर ईरान के साथ अनुबंधित शेष मात्रा को लागत, बीमा और माल ढुलाई CIF आयात में परिवर्तित करने की आवश्यकता है। अतः इसके लिये जहाज़ मंत्रालय द्वारा अनुमति दी गई है।
★ उल्लेखनीय है कि लागत, बीमा और फ्रेट (CIF) एक लागत आधार है जिसका अर्थ है कि, जहाज और बीमा की व्यवस्था विक्रेता करता है, जबकि बोर्ड पर नि: शुल्क (FOB) एक व्यापार शब्द है जो इंगित करता है कि विक्रेता या खरीदार शिपिंग के दौरान क्षतिग्रस्त या नष्ट होने वाले सामानों के लिये उत्तरदायी है या नहीं।
★ भारतीय जहाजों को कार्गो समर्थन प्रदान करने के लिये डिज़ाइन की गई फ्लेगशिप नीति है जो FOB आधार पर सभी सरकारी स्वामित्व वाली/नियंत्रित कार्गो की खरीद के लिये ज़रूरी है, जिसमें भारतीय खरीदार को शिपिंग व्यवस्था को अंतिम रूप देना होगा।
★ यह इस बात को भी इंगित करता है कि भारतीय रिफाइनरीज़ अधिक अमेरिकी तेल खरीदने की स्थिति में होंगे, जो ज्यादातर CIF आधार पर उपलब्ध है, यह ईरान से तेल की आपूर्ति के नुकसान की भरपाई करने में मदद करेगा।
★ चर्चा में क्यों?
★ भारत और ईरान ने कच्चे तेल में अपना व्यापार जारी रखने के लिये नए नियम स्थापित किये हैं, भारत ने विवादित परमाणु कार्यक्रम के कारण फारस खाड़ी के देशों पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका से अस्थायी छूट हासिल की है।
● प्रमुख बिंदु
★ उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने भारत और अन्य देशों से चार नवंबर तक ईरान से तेल आयात में कटौती कर उसे समाप्त करने या प्रतिबंधों का सामना करने के लिये तैयार रहने की बात कही थी।
★ जहाज़ और कार्गो बीमा की कमी सऊदी अरब और इराक के बाद भारत के तीसरे सबसे बड़े आपूर्तिकर्त्ता ईरान से होने वाले आयात को नुकसान पहुँचाएगी।
★ इस बाधा को दूर करने के लिये भारत के नौवहन मंत्रालय ने राज्य द्वारा संचालित तेल रिफाइनरों के माध्यम से द्वारा कच्चे तेल की खरीद के लिये सरकार द्वारा अनिवार्य एक महत्वपूर्ण शिपिंग नियम में संशोधन किया है।
★ इस नियम के अनुसार लंदन स्थित वैश्विक बीमा समूह द्वारा विस्तारित एक बराबर देयता सीमा के साथ देश में क्रूड ऑयल लाने वाले ईरान के टैंकरों को कवर प्रदान करने हेतु मंत्रालय ने दो ईरानी जहाज़ अंडरराइटर्स - किश पी एंड आई क्लब और क्यूआईटीए पी एंड आई क्लब के लिये फरवरी 2020 तक की अनुमति दी है।
★ इस कदम से यह उम्मीद की जा रही है कि प्रतिबंध प्रभावित देश से तेल की आपूर्ति जारी रखने में मदद मिलेगी।
★ इस नियम के मुताबिक भारत कच्चे खरीद के लिये ईरान का रूपए में भुगतान करेगा, जिसका ईरान भारत से माल आयात करने के लिये उपयोग करेगा।
★ उल्लेखनीय है कि IOCL, MRPL, BPCL और HPCL समेत राज्य संचालित तेल रिफाइनरीज़ ने ईरान के साथ सालाना टर्म कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किये थे, इससे पहले अमेरिका ने इसी वर्ष मई 2016 में ईरान के साथ पश्चिमी देशों द्वारा हस्ताक्षरित एक परमाणु समझौते से बाहर निकलने के बाद प्रतिबंधों को दोबारा लागू किया जाने का फैसला किया था। इस फैसले के बाद आधे से अधिक रिफाइनरीज़ ने इन अनुबंधों को छोड़ दिया था।
★ नए प्रतिबंधों के लागू होने के बाद FOB आधार पर ईरान के साथ अनुबंधित शेष मात्रा को लागत, बीमा और माल ढुलाई CIF आयात में परिवर्तित करने की आवश्यकता है। अतः इसके लिये जहाज़ मंत्रालय द्वारा अनुमति दी गई है।
★ उल्लेखनीय है कि लागत, बीमा और फ्रेट (CIF) एक लागत आधार है जिसका अर्थ है कि, जहाज और बीमा की व्यवस्था विक्रेता करता है, जबकि बोर्ड पर नि: शुल्क (FOB) एक व्यापार शब्द है जो इंगित करता है कि विक्रेता या खरीदार शिपिंग के दौरान क्षतिग्रस्त या नष्ट होने वाले सामानों के लिये उत्तरदायी है या नहीं।
★ भारतीय जहाजों को कार्गो समर्थन प्रदान करने के लिये डिज़ाइन की गई फ्लेगशिप नीति है जो FOB आधार पर सभी सरकारी स्वामित्व वाली/नियंत्रित कार्गो की खरीद के लिये ज़रूरी है, जिसमें भारतीय खरीदार को शिपिंग व्यवस्था को अंतिम रूप देना होगा।
★ यह इस बात को भी इंगित करता है कि भारतीय रिफाइनरीज़ अधिक अमेरिकी तेल खरीदने की स्थिति में होंगे, जो ज्यादातर CIF आधार पर उपलब्ध है, यह ईरान से तेल की आपूर्ति के नुकसान की भरपाई करने में मदद करेगा।
कच्चे तेल आयात हेतु नए नियम (India-Iran)
Reviewed by YoGi
on
7:05 AM
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