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आर्थिक शिथिलता और क्षतिपूर्ति

आर्थिक शिथिलता और क्षतिपूर्ति

आर्थिक शिथिलता और क्षतिपूर्ति


चर्चा में क्यों ?

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) हेतु क्रेडिट उपलब्धता में सुधार करने के लिये सरकार द्वारा किया जा रहा हस्तक्षेप स्वागत योग्य कदम है जो आर्थिक संवृद्धि में सहायक साबित हो सकता है। यह एक स्वीकार्य तथ्य है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) विमुद्रीकरण (Demonetisation) के साथ-साथ वस्तु एवं सेवा कर (GST) जैसे कानूनों से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।


महत्त्वपूर्ण बिंदु

विमुद्रीकरण (Demonetisation) ने इन इकाइयों के समक्ष मज़दूरों को नकद भुगतान और क्रेडिट हासिल करने की समस्या खड़ी कर दी, जो अनौपचारिक चैनलों के माध्यम से बड़े पैमाने पर होता था।

इसी तरह वस्तु एवं सेवा कर (GST) ने कागज़ी काम-काज से मुक्त, नकदी में व्यवसाय करने के निहित फायदों से वंचित करते हुए अनुपालन लागत में वृद्धि कर दी।

तथ्य यह है कि MSMEs का बकाया सकल बैंक क्रेडिट वास्तव में सितंबर 2014 और सितंबर 2018 के बीच 4.71 लाख करोड़ रुपए से घटकर 4.69 करोड़ रुपए हो गया है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना जैसे पुनर्वित्त योजनाओं के बावजूद औपचारिक ऋण संस्थान आर्थिक शिथिलता को गति देने में असमर्थ रहे हैं।

यह चिंताजनक इसलिये है क्योंकि MSME क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 30 प्रतिशत, विनिर्माण उत्पादन का 45 प्रतिशत और व्यापार निर्यात का 40 प्रतिशत हिस्सा धारण करता है।

यह देखते हुए कि GST और विमुद्रीकरण जैसे कानूनों की मार झेलते हुए भी MSME क्षेत्र ने बैंकिंग प्रणाली की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के संकट में सबसे कम योगदान किया है, अतः सरकार की नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है कि इस क्षेत्र की सहायता की जाए।

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को लोन की सुविधा प्रदान की गई है। इससे हफ्तों बैंकों के चक्कर लगाने, बोझिल व जटिल पेपरवर्क करने की कोई जरूरत नहीं होगी।

केंद्र सरकार ने एक वेबसाइट भी लॉन्च की है जिससे 1 करोड़ रुपयए तक के बिज़नेस लोन सिर्फ 59 मिनट में मिल जाएंगे।

छोटे उद्यमियों के लिये यह योजना काफी कारगर साबित होने वाली है और इसके तहत 20-25 दिनों की बजाय सिर्फ 59 मिनट में लोन को मंज़ूरी मिल जाएगी। मंज़ूरी के बाद करीब एक हफ्ते में लोन का वितरण हो जाएगा।

इस सरकारी वेबसाइट पर एक घंटे से भी कम वक्त में 10 लाख से लेकर एक करोड़ रुपए तक के बिज़नेस लोन को सैद्धांतिक मंज़ूरी मिल चुकी है।

गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों (NBFCs) की स्थिति भी चिंता का विषय है, जिनका MSMEs में कुल औपचारिक क्रेडिट हिस्सा दिसंबर 2015 में करीब 5.5 प्रतिशत की तुलना में मार्च 2018 में 10 प्रतिशत हो गया है।

ऐसे संस्थान अब खुद लिक्विडिटी की कमी का सामना कर रहे हैं, जैसे IL&FS का ऋण न चुका पाना।

शिथिल पड़ती जा रही अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को गति प्रदान करने वाले ऐसे उपाय स्वागत योग्य हैं। इसके अलावा सतत् आर्थिक संवृद्धि के लिये सामरिक उपायों को भी अपनाने की आवश्यकता है जो अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में आपसी सामंजस्य बैठाते हुए गति प्रदान करने में सक्षम होंगे।
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